निर्गुन कौन देस को बासी पद की व्याख्या
निर्गुन कौन देस को बासी ?
मधुकर! हँसि समुझाय, सौंह दै बूझति, साँच, न हाँसी॥
को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि, को दासी?
कैसो बरन, भेस है कैसो केहि रस कै अभिलासी॥
पावैगो पुनि कियो अपनो जो रे! कहैगो गाँसी॥
सुनत कौन ह्वै रह्यो ठग्यो सो सूर सबै मति नासी॥
प्रसंग
प्रस्तुत निर्गुन कौन देस को बासी पद महान कृष्ण भक्त कवि सूरदास जी की अमूल्य साहित्यिक धरोहर सूरसागर से लिया गया है। सूरसागर में यह संपूर्ण वृतांत भ्रमरगीत के नाम से दर्ज है।
संदर्भ
सूर की गोपियां उद्धव से निर्गुण के संबंध में जो सवाल करती हैं, उन्हीं का चित्रण इस पद में हुआ है।
व्याख्या
कृष्ण के मित्र उद्धव जी, जो मथुरा से कृष्ण के द्वारा भेजे गए हैं, गोपियों को सगुण ईश्वर (कृष्ण) को छोड़कर निर्गुण (ब्रह्म) की उपासना करने के लिए कहते हैं। उनके ऐसी सलाह देने पर गोपियां उनसे निर्गुण के संबंध में कुछ बहुत रोचक प्रश्न करती हैं।
गोपियां उद्धव से पूछती हैं कि उनके निर्गुण ब्रह्म किस देश में वास करते हैं? उद्धव को भंवरे की उपाधि देते हुए गोपियां उनसे कहती हैं कि वे सौगंध खा रही हैं कि वे बिल्कुल भी उपहास नहीं कर रही हैं और बहुत गंभीरता से निर्गुण के बारे में जानना चाहती हैं। निर्गुण के पिता कौन हैं? किन्होंने उनको जन्म दिया है और कौन उनकी पत्नी हैं और यह कि कौन उनकी चाकरी करते है?
गोपियां ये सारे सवाल करने के साथ आगे पूछती हैं कि उनके (उद्धव के) निर्गुण का रंग कैसा है, वेशभूषा कैसी है और किन चीजों में वे रुचि रखते हैं? गोपियां उद्धव को साफ-साफ चेतावनी देती हैं कि अगर उन्होंने गोपियों को ग़लत जानकारी दी तो उन्हें इसका फल भुगतना पड़ेगा। गोपियों के ऐसे अटपटे सवालों को सुनकर सूरदास जी कहते हैं कि उद्धव जी का सर चकराने लगा और वे ठगे-से वहीं खड़े रह गए।
विशेष
1.गोपियों के वाक्चातुर्य के साथ-साथ कृष्ण के प्रति अनन्य अनुराग इस पद में व्यक्त हुआ है।
2.कृष्ण का जन्म स्थान, उनके माता-पिता, उनका रंग और उनकी रुचि से भली भांति परिचित गोपियां यही सब जिस प्रकार निर्गुण ब्रह्म के लिए जानना चाहती हैं, वह बहुत मनोरंजक एवं तार्किक है।
3.ब्रजभाषा का स्वाभाविक सौंदर्य द्रष्टव्य है।
4.अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है।
5.शैली तार्किक है ।
6. मधुरा भक्ति और विप्रलंभ शृंगार का पूर्ण परिपाक हुआ है।
© डॉक्टर संजू सदानीरा
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